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Report : Mahesh Gupta गोण्डा। किसान जब अपने कठिन मेहनत से फसल तैयार कर उसे बेचता था तो बिचैलियों व्यापारियों द्वारा फसल औने-पौने दामों में खरीद ली जाती थे, जिससे उसे फसल की लागत व मेहनत का सही मूल्य नहीं मिलता था. कभी-कभी पैसे की आवश्यकता पड़ने पर किसान को कम दाम पर फसल बेचना […]
गोण्डा। किसान जब अपने कठिन मेहनत से फसल तैयार कर उसे बेचता था तो बिचैलियों व्यापारियों द्वारा फसल औने-पौने दामों में खरीद ली जाती थे, जिससे उसे फसल की लागत व मेहनत का सही मूल्य नहीं मिलता था. कभी-कभी पैसे की आवश्यकता पड़ने पर किसान को कम दाम पर फसल बेचना पड़ता था. इससे उनकी आर्थिक प्रगति नहीं हो पाती थी. किसानों की फसल विक्रय को दृष्टिगत रखते हुए परम्परागत कृषि मण्डियों में व्याप्त कुरीतियों, गैर कानूनी कटौतियों और बिचैलियों के अनुचित प्रभाव को समाप्त कर कृषि विपणन की स्वस्थ परम्पराओं की स्थापना के लिए प्रदेश में उ0प्र0 कृषि उत्पादन मण्डी अधिनियम लागू हुआ. इस मण्डी अधिनियम के अन्तर्गत विनियमित मण्डियों के गठन का कार्य प्रारम्भ किया गया. प्रदेश में विनियमित मण्डियों की शुरूआत में संख्या मात्र 2 थी, जो अब बढ़कर 251 मण्डियां हो गयी, जिनमें 381 उपमण्डियां भी सम्बद्ध हैं. अब समग्र प्रदेश विनियमन के अन्तर्गत आ चुका है. मण्डियों में कृषि उपज की कुल प्रक्रिया को व्यवस्थाबद्ध कर देना ही मण्डी विनियमन है. इस व्यवस्था के अन्तर्गत बिक्री योग्य कृषि जिन्सों की छनाई-सफाई और वर्गीकरण कराते हुए नीलामी द्वारा बिक्री करायी जाती है. प्रत्येक किसान की सहमति से सौदा तय होता है तथा मीट्रिक प्रणाली से सही माप-तौल करा कर किसानों के विक्रय मूल्य का भुगतान तुरन्त कराया जाता है.
कृषि उपज मण्डियों के कार्य संचालन हेतु सम्पूर्ण प्रदेश को मण्डी क्षेत्रों में बांटा गया है. प्रत्येक मण्डी क्षेत्र हेतु एक मण्डी समिति के गठन की व्यवस्था है. प्रत्येक मण्डी क्षेत्र के अन्तर्गत एक प्रधान मण्डी स्थल, जहां पर मण्डी समिति का कार्यालय स्थापित होता है. मण्डी समिति के कर्तव्य एवं दायित्व भी निर्धारित हैं जैसे कृषि उपज के क्रेता- विक्रेता के मध्य न्यायपूर्ण व्यवहार सुनिश्चित करना, बिक्री योग्य कृषि उपज का वर्गीकरण तथा नीलामी द्वारा बिक्री कराना, मीट्रिक प्रणाली से ही माप-तौल की व्यवस्था कराते हुए बिकी हुई उपज का तुरन्त भुगतान कराना, क्रेता-विक्रेता के लिए उपयोगी सूचनाओं का संकलन व प्रचार करना, क्रय-विक्रय की स्वस्थ परम्पराओं की स्थापना व मण्डी स्थलों में आवश्यक मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था सुनिश्चित करना, बिकी हुई कृषि उपज का तत्काल भुगतान सुनिश्चित कराना, किसी विवाद की स्थिति में न्यायपूर्ण समाधान के लिए मध्यस्थता करना, बाजार भावों तथा अन्य उपयोगी सूचनाओं का संग्रह और प्रचार-प्रसार करना, व्यापारियों तथा कृषकों के बीच विवाद एवं मतभेद होने पर मध्यस्थ की भूमिका निभाना तथा उनका निराकरण करना, मण्डी स्थलों के निर्माणार्थ भूमि अर्जन करना तथा निर्माण के नक्शे तैयार के साथ-साथ आय व व्यय का विधिवत लेखा-जोखा रखना प्रमुख है.
मण्डी समितियों के कार्य संचालन तथा उनकी विकास योजनाओं की निगरानी, नियंत्रण एवं मार्गदर्शन के लिए प्रदेश स्तर पर मण्डी परिषद की स्थापना की गयी है. मण्डी परिषद द्वारा मण्डी समितियों में अधिनियम के प्राविधानों को तथा विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं लागू करने और उनकी निर्माण परियोजनाओं के अनुसार निर्माण कार्य कराने की कार्यवाहियां सम्पादित करायी जाती हैं तथा अधिनियम के अन्तर्गत नये मण्डी क्षेत्रों/उपमण्डी स्थलों के विनियमन, निर्मित मण्डी स्थलों में व्यापार स्थानान्तरण, विनियमन हेतु निर्दिष्ट कृषि उत्पादों को अधिसूचित कराने जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए मण्डी परिषद, मण्डी समिति और शासन के बीच कड़ी के रूप में कार्य करती है. मण्डी परिषद की सक्रियता का ही परिणाम है कि आज प्रदेश में किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिल रहा है, और वे अपनी आमदनी में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं.